सत्येंद्र नारायण सिन्हा (12 जुलाई 1917 – 4 सितंबर 2006) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी सेनानी, प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ और बिहार के 19वें मुख्यमंत्री थे। उन्हें आदरपूर्वक “छोटे साहब” के नाम से जाना जाता था। वे न केवल बिहार बल्कि पूरे भारत में एक अनुशासनप्रिय और सख्त प्रशासक के रूप में प्रसिद्ध थे।
प्रारंभिक जीवन और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
सत्येंद्र नारायण सिन्हा का जन्म बिहार के औरंगाबाद जिले के पोइवन गांव में एक राजपूत परिवार में हुआ। उनके पिता, डॉ. अनुग्रह नारायण सिन्हा, स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता और बिहार के पहले उपमुख्यमंत्री थे। सत्येंद्र नारायण ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक और लखनऊ विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की।
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भागीदारी निभाई। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, उन्होंने राजनीतिक कैदियों के लिए कानूनी सहायता कार्यक्रम का भी आयोजन किया।
राजनीतिक करियर और योगदान
स्वतंत्रता के बाद:
1947 में आजादी के बाद, सत्येंद्र नारायण सिन्हा 1950 में बिहार से संविधान सभा के सदस्य चुने गए। उन्होंने कांग्रेस पार्टी के “यंग टर्क” समूह के हिस्से के रूप में काम किया और जवाहरलाल नेहरू के करीबी सहयोगी रहे।
बिहार की शिक्षा में सुधार:
1961-1967 के दौरान उन्होंने बिहार के शिक्षा मंत्री के रूप में काम किया। इस दौरान, उन्होंने मगध विश्वविद्यालय (1962) की स्थापना की और राज्य की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बिहार के 19वें मुख्यमंत्री:
1989-1990 के दौरान वे बिहार के 19वें मुख्यमंत्री बने। इस अवधि में उन्होंने नबीनगर सुपर थर्मल पावर प्रोजेक्ट का प्रस्ताव रखा और पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया।
आपातकाल और जनता पार्टी:
1975 में इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल का उन्होंने कड़ा विरोध किया। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में आंदोलन में शामिल होकर वे जनता पार्टी के साथ सक्रिय हुए। 1977 के चुनाव में उन्होंने जनता पार्टी को बिहार में ऐतिहासिक जीत दिलाने में मदद की।
संसदीय करियर:
सत्येंद्र नारायण सिन्हा औरंगाबाद से सात बार लोकसभा सदस्य चुने गए। वे लोकसभा की विभिन्न समितियों के सदस्य रहे और सामाजिक कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाई।
विरासत और योगदान
सत्येंद्र नारायण सिन्हा ने शिक्षा, पंचायती राज और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में अपने दूरदर्शी प्रयासों के लिए गहरी छाप छोड़ी। उनकी पुस्तक “मेरी यादें, मेरी भूलें” में उनके राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन का विस्तृत वर्णन है।
उद्धरण:
- “मैं सहभागी लोकतंत्र में विश्वास करता हूं, न कि तानाशाही में।”
- “वे एक महान शिक्षाविद् और मानवीय नेता थे, जिन्होंने बिहार की शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए अद्वितीय योगदान दिया।” — नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री, बिहार
सत्येंद्र नारायण सिन्हा का निधन 2006 में हुआ, लेकिन उनकी विरासत आज भी बिहार और भारतीय राजनीति के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।