भगवत झा आजाद एक प्रतिष्ठित स्वतंत्रता सेनानी और प्रख्यात राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने भारतीय राजनीति में एक अमिट छाप छोड़ी। वे बिहार के 18वें मुख्यमंत्री के रूप में 14 फरवरी 1988 से 10 मार्च 1989 तक कार्यरत रहे। उनकी जीवन यात्रा स्वतंत्रता संग्राम से शुरू होकर भारतीय राजनीति के उच्चतम पदों तक पहुंची।
प्रारंभिक जीवन और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
भगवत झा आजाद का राजनीतिक सफर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान शुरू हुआ। उस समय वे महज 20 वर्ष के कॉलेज छात्र थे। इस आंदोलन में भाग लेने के दौरान उन्हें एक प्रदर्शन में पैर में गोली लगी, जिससे वे तत्कालीन मीडिया में प्रसिद्ध हो गए। इसके बाद, ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ उनके संघर्ष ने उन्हें कई बार जेल की सजा भी दिलाई।
स्वतंत्रता के बाद का राजनीतिक करियर
1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, भगवत झा आजाद ने राजनीति में कदम रखा और अपनी योग्यता और मेहनत से राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई।
प्रमुख उपलब्धियां:
- बिहार के 18वें मुख्यमंत्री:
- उन्होंने 14 फरवरी 1988 से 10 मार्च 1989 तक बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा की।
- उनके कार्यकाल में बिहार के विकास और प्रशासनिक सुधारों पर जोर दिया गया।
- लोकसभा सदस्यता:
- भागलपुर लोकसभा क्षेत्र का पांच बार प्रतिनिधित्व किया।
- वे तीसरी, चौथी, पांचवीं, सातवीं और आठवीं लोकसभा के सदस्य रहे।
- केंद्रीय मंत्री:
- 1967 से 1983 तक वे केंद्र सरकार में कृषि, शिक्षा, श्रम और रोजगार, नागरिक उड्डयन, तथा खाद्य और नागरिक आपूर्ति जैसे विभागों में मंत्री रहे।
- “यंग टर्क्स” समूह:
- वे बिहार के उस प्रभावशाली समूह का हिस्सा थे, जिसे “यंग टर्क्स” कहा जाता है। इस समूह में बिंदेश्वरी दुबे, अब्दुल गफूर, चंद्रशेखर सिंह, सत्येंद्र नारायण सिन्हा, और केदार पांडे जैसे नेता शामिल थे।
व्यक्तिगत जीवन और विरासत
भगवत झा आजाद के बेटे कीर्ति आजाद (मशहूर क्रिकेटर) और यशवर्धन आजाद (पूर्व आईपीएस अधिकारी) भी अपने-अपने क्षेत्रों में प्रसिद्ध हैं।
निधन:
2011 में 89 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। वे लंबे समय तक बीमार रहे।
निष्कर्ष
भगवत झा आजाद का जीवन स्वतंत्रता संग्राम, भारतीय राजनीति, और बिहार के विकास के लिए समर्पित रहा। वे भारतीय राजनीति के उन नेताओं में से एक हैं, जिन्होंने अपनी सादगी, संघर्ष और कर्मठता से लोगों के दिलों में खास स्थान बनाया।