बिंदेश्वरी दुबे (14 जनवरी 1921 – 20 जनवरी 1993) एक स्वतंत्रता सेनानी, श्रमिक संघ नेता और राजनीतिक नेता थे, जिन्होंने 12 मार्च 1985 से 13 फरवरी 1988 तक बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया।
प्रारंभिक जीवन
बिंदेश्वरी दुबे का जन्म 14 जनवरी 1921 को बिहार के भोजपुर जिले के महुआन गांव में एक कन्याकुब्जा ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका परिवार कृषक था, और दुबे के शिक्षा के प्रति रुझान को उनके परिवार ने शुरू में प्राथमिकता नहीं दी। बाद में, वह पटना चले गए और अपने मामा के घर रहकर सेंट माइकल्स हाई स्कूल, पटना से अपनी पढ़ाई जारी रखी।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
1942 में, बिंदेश्वरी दुबे ने Quit India Movement (भारत छोड़ो आंदोलन) में भाग लिया और अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ दी। इसके बाद उनका जीवन स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से जुड़ गया।
राजनीतिक करियर
बिंदेश्वरी दुबे ने बिहार विधान सभा के सदस्य के रूप में पांच बार कार्य किया। वह 1952 से 1957, 1962 से 1977 और फिर 1985 से 1988 तक बिहार विधानसभा के सदस्य रहे। 1985 में, उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला और 1988 तक मुख्यमंत्री के पद पर रहे।
उनकी मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल के दौरान ‘ऑपरेशन ब्लैक पैंथर’ और ‘ऑपरेशन सिद्धार्थ’ जैसे अभियानों का संचालन किया गया था। इन अभियानों का उद्देश्य अपराधियों और आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करना था।
राष्ट्रीय राजनीति में योगदान
बिंदेश्वरी दुबे 1980 से 1984 तक सातवीं लोक सभा के सदस्य रहे। बाद में, 1988 से 1993 तक वह राज्यसभा के सदस्य रहे और राजीव गांधी की सरकार में कानून और न्याय मंत्री तथा श्रम मंत्री के रूप में कार्य किया।
श्रमिक संघ आंदोलन
बिंदेश्वरी दुबे ने भारत के कोयला, इस्पात, इंजीनियरिंग, पावर और चीनी उद्योगों में श्रमिक संघ आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय श्रमिक संघ (INTUC) के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में कार्य किया और कई अन्य श्रमिक संघों के भी अध्यक्ष रहे।
विवाद
उनके कार्यकाल के दौरान बिहार में कई विवाद उत्पन्न हुए, जिनमें परारिया गांव में हुई जातीय हिंसा और पुलिस अत्याचार प्रमुख हैं। इसके अलावा, भ्रष्टाचार और राजनीतिक अपराधियों के समर्थन के आरोप भी लगे।
उनकी विरासत
बिंदेश्वरी दुबे की याद में कई संरचनाएं और संस्थान स्थापित किए गए हैं:
- बिहार सरकार द्वारा हर साल 14 जनवरी को उनके जन्म दिवस पर राजकीय कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।
- बिंदेश्वरी दुबे स्मृति ग्रंथ उनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित किया गया।
- भोजपुर, बिहार में उनके सम्मान में एक प्रतिमा और एक कॉलेज का निर्माण किया गया।
निष्कर्ष
बिंदेश्वरी दुबे भारतीय राजनीति के एक प्रभावशाली नेता थे, जिनकी विरासत आज भी बिहार में जीवित है। उनका योगदान न केवल बिहार के विकास में, बल्कि श्रमिकों के अधिकारों के लिए भी महत्वपूर्ण था।