जीवन परिचय
रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 24 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गाँव में हुआ था। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास और राजनीति विज्ञान में बीए किया। हिंदी के अलावा वे संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू भाषा में भी दक्ष थे। बी.ए. की पढ़ाई के बाद उन्होंने अध्यापन कार्य किया और बाद में बिहार सरकार में विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे। वे भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति (1963-1965) और भारत सरकार के हिंदी सलाहकार (1965-1971) भी रहे।
साहित्यिक योगदान
दिनकर ने समाज में व्याप्त असमानता, शोषण और राष्ट्रीय चेतना को अपनी कविताओं का केंद्र बनाया। उनकी रचनाओं में वीर रस और ओजस्विता प्रमुख रूप से दिखाई देती है। उनके प्रमुख काव्य ग्रंथों में ‘रश्मिरथी’, ‘परशुराम की प्रतीक्षा’, ‘कुरुक्षेत्र’ और ‘उर्वशी’ शामिल हैं। उनकी रचना ‘संस्कृति के चार अध्याय’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और ‘उर्वशी’ के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया।
प्रमुख कृतियाँ
काव्य संग्रह:
- रेणुका (1935)
- हुंकार (1938)
- रसवंती (1939)
- कुरुक्षेत्र (1946)
- रश्मिरथी (1952)
- उर्वशी (1961)
- परशुराम की प्रतीक्षा (1963)
गद्य एवं निबंध:
- संस्कृति के चार अध्याय (1956)
- हमारी सांस्कृतिक एकता (1955)
- राष्ट्रभाषा और राष्ट्रीय एकता (1958)
- साहित्य मुखी (1968)
दिनकर और राजनीति
1952 में दिनकर राज्यसभा के सदस्य चुने गए और 12 वर्षों तक संसद में रहे। 1962 में चीन से युद्ध में भारत की हार के बाद उनकी कविताएँ सत्ता को झकझोरने का कार्य करती थीं। उनके द्वारा संसद में पढ़ी गई कविता—
“देखने में देवता सदृश्य लगता है,
बंद कमरे में बैठकर गलत हुक्म लिखता है।”
—नेहरू सरकार के लिए एक चेतावनी थी।
सम्मान एवं पुरस्कार
- पद्म विभूषण (1959)
- साहित्य अकादमी पुरस्कार (1959) – संस्कृति के चार अध्याय
- ज्ञानपीठ पुरस्कार (1972) – उर्वशी
- भारतीय डाक विभाग द्वारा 1999 में डाक टिकट जारी
निष्कर्ष
रामधारी सिंह दिनकर न केवल हिंदी साहित्य बल्कि भारतीय राजनीति और समाज पर भी गहरा प्रभाव छोड़ने वाले व्यक्तित्व थे। उनकी रचनाएँ आज भी युवाओं में जोश और राष्ट्रीयता की भावना को जागृत करती हैं। उनकी साहित्यिक विरासत हिंदी जगत के लिए एक अनमोल धरोहर बनी हुई है।