बिहार केसरी” के नाम से विख्यात डॉ. श्रीकृष्ण सिंह (श्री बाबू) (1887–1961) अविभाजित बिहार के पहले मुख्यमंत्री (1946–1961) थे। उनके साथ डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री के रूप में कार्यरत रहे। श्री बाबू के कार्यकाल में बिहार ने उद्योग, कृषि, शिक्षा, सिंचाई, स्वास्थ्य, कला, और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल कीं। उनके प्रयासों से बरौनी में देश की पहली तेल रिफाइनरी, सिन्दरी और बरौनी में खाद कारखाने, हटिया में एशिया का सबसे बड़ा इंजीनियरिंग संयंत्र (एचईसी), बोकारो में इस्पात संयंत्र, और गढ़हरा में एशिया का सबसे बड़ा रेलवे यार्ड जैसे प्रतिष्ठान स्थापित किए गए। साथ ही, गंगा नदी पर राजेंद्र पुल (पहला रेल-सह-सड़क पुल), कोशी परियोजना, पुसा और सबौर में कृषि महाविद्यालय, तथा बिहार, भागलपुर, और रांची विश्वविद्यालयों की नींव भी इसी दौर में पड़ी। संसद द्वारा नियुक्त श्री एपेल्लवी की रिपोर्ट में बिहार को श्रेष्ठ शासन और मजबूत अर्थव्यवस्था वाला राज्य माना गया था।
बिहार के इस उत्कर्ष में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें “आधुनिक बिहार के निर्माता” के रूप में मान्यता प्राप्त है, और श्रद्धा के साथ उन्हें “बिहार केसरी” व “श्री बाबू” कहा जाता है।
प्रमुख स्मरणीय स्थल
- जन्मस्थान – खनवां, नवादा: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यहाँ श्री बाबू की स्मृति में कई परियोजनाओं को अमलीजामा पहनाया है, जिनमें एक स्मारक भवन, पार्क, पॉलीटेक्निक कॉलेज, अस्पताल, पावर हाउस और पावर ग्रिड प्रमुख हैं।
- पैतृक गाँव – माउर, बरबीघा (शेखपुरा): यहाँ उनकी याद में प्रवेश द्वार और प्रतिमाएँ स्थापित हैं, तथा कई शिक्षण संस्थाओं का नामकरण श्री बाबू के सम्मान में किया गया है।
- कर्मभूमि – गढ़पुरा: सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान श्री बाबू ने मुंगेर से गढ़पुरा तक की पदयात्रा कर ब्रिटिश नमक कानून का विरोध किया। इस कार्य के लिए महात्मा गांधी ने उन्हें “बिहार का प्रथम सत्याग्रही” कहा। गढ़पुरा में उनकी स्मृति में स्मारक निर्माणाधीन है और भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया चल रही है।
गढ़पुरा नमक सत्याग्रह पदयात्रा
हर वर्ष 17 अप्रैल को यह यात्रा मुंगेर के श्रीकृष्ण सेवा सदन से प्रारंभ होकर 21 अप्रैल को गढ़पुरा में संपन्न होती है। सरकार ने इस ऐतिहासिक यात्रा की स्मृति में सड़क का नाम “नमक सत्याग्रह पथ” रखा है, जो किसी ऐतिहासिक घटना के स्मरण में नामित सबसे लंबा मार्ग माना जाता है।
अन्य प्रमुख स्मारक
- मुंगेर: कष्टहरणी घाट के निकट गंगा पर बने रेल-सह-सड़क पुल को “श्रीकृष्ण सेतु” नाम दिया गया है।
- पटना: गांधी मैदान के पास “श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल” बनाया गया है, जहाँ श्री बाबू की आदमकद प्रतिमा भी स्थापित है।
- बेगूसराय: जीडी कॉलेज, श्रीकृष्ण महिला कॉलेज, और अन्य महत्वपूर्ण स्थलों पर उनकी प्रतिमाएँ स्थापित हैं।
इसके अतिरिक्त, रांची में श्री बाबू के नाम पर एक पार्क भी है, जो बिहार के साथ उनके ऐतिहासिक संबंध को दर्शाता है।