गोलियों को हंसते-हंसते अपने सीने में समा लिया: सतीश प्रसाद झा

बांका जिले में शहीदों के नाम आते ही सतीश प्रसाद झा के नाम लोगों के जुबां पर बरबस ही आ जाते हैं। इनका नाम भारत माता के उन सपूतों के नामों में शुमार रहे हैं जो गुलाम भारत को आजाद कराने में देश के अन्य रणबांकुरों की तरह अपनी-अपनी कुर्बानियां दे दी थी।11 अगस्त 1942 को पटना के पास सचिवालय भवन में भारत का झंडा फहराने वाले सात शहीदों में से एक थे सतीश प्रसाद झा


सतीश चंद्र झा आजादी की लड़ाई में महज 17 साल की छोटी उम्र में अंग्रेजों की गोलियों को हंसते-हंसते अपने सीने में समा लिया थे। पटना के उस समय के जिलाधिकारी डब्ल्यू जी आर्थर के आदेश पर पुलिस ने गोलियां चलाई थीं। इसमें लगभग 13 से 14 राउंड गोलियों की बौछार हुई थी

देश की आजादी के लिए बलिदान देने वाले शहीद सतीश ने 11 अगस्त 1942 को भारत की आजादी के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर कर, अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहादत को गले लगाया।शहीद स्मारक सात शहीदों की एक जीवन-आकार की मूर्ति है जिसे आज भी पटना में सचिवालय भवन के बाहर देखा जा सकता है। इन युवाओं ने भारत छोड़ो आन्दोलन (अगस्त 1942) में सचिवालय भवन पर राष्ट्रीय ध्वज फहराते हुए अपने जीवन का बलिदान दिया था।

stamp on seven martyr of Patna

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